Saturday, March 23, 2013

23 मार्च 1931 "बलिदान दिवस"


आज 23 मार्च शहीद ऐ आजम भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के बलिदान दिवस के अवसर पर कृतज्ञ राष्ट्र की भाव भीनी श्रधांजलि तथा युवा सलाम |
इस महान क्रांतिकारियों के लिए दो शब्द—
आपने दिया देश को जीवन, यह देश आपको क्या देगा ??
मगर गर्म रखने को लहू यह नाम आपका लेगा ||

साथियों यूँ तो  इस देश के क्रान्तिकारियों की लम्बी सूची हैं. उनकी संख्या भी कम नहीं है जो फांसी पर चढ़े, किन्तु भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु का बलिदान के उपरांत भारत में क्रांति की लहर इतनी तेज हो गयी थी  अंग्रेजों के नीव हिल गए थे
सशस्त्र क्रान्ति द्वारा देश को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने का प्रयास करना चाहिए यह विचार 1857 की सैनिक क्रान्ति के बाद से ही उभरने लगा था और देश के विभिन्न भागों में उसकी सक्रियता भी प्रारंभ हो गई थी. 
स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयत्नों की  प्रेरणा में धर्म-भावना का प्रभाव भी बहुत व्यापक था. बंगाल के क्रान्तिकारी हाथ में गीता लेकर फांसी पर झूल जाते थे. देश में आया नवजागरण हिन्दू नवजागरण, मुस्लिम नवजागरण और सिख नवजागरण के रूप में उभरा था. लेकिन भगत सिंह इनसे भिन्न किन्तु भगत सिंह संसार के विभिन्न भागों  में होने वाली क्रान्तियों से पूरी तरह परिचित होना चाहते थे और अपने सभी प्रयासों को उसी तरह ढालना चाहते थे. फ्रांस की राजक्रान्ति और रूस की बोल्शेविक क्रान्ति ने उन्हें बहुत प्रभावित और रोमांचित किया था. मार्क्‍स और लेनिन की  पुस्तकों को वह बड़े मनोयोग से पढ़ते थे.
साथियों भगत सिंह इक व्यक्ति नहीं विचार थे उनका इक प्रिये शायरी जो वो हमेशा दोहराते रहते थेहमें यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है

     हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
     दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
     चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
     सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।


 एकवार इंकलाब को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा था  .इंकलाब जिंदाबाद से हमारा अर्थ है कभी पराजय स्वीकार न करने वाली वह भावना, जिसने जतिन दास जैसे शहीद पैदा किए. हमारी इच्छा है कि हम यह नारा बुलन्द करते समय अपने आदर्शो की भावना को जिंदा रखें. इंकलाब सिर्फ बम और पिस्तौल के साथ ही नहीं जुड़ा होगा. बम और पिस्तौल तो कभी-कभी इंकलाब के भिन्न-भिन्न रूपों की पुष्टि के लिए साधन मात्र हैं. हम यह स्वीकार करते हैं कि केवल बगावत को इंकलाब कहना ठीक नहीं है हम देश में बेहतर परिवर्तन के लिए इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं. , हम अपना नारा कारखानों में काम करने वाले लाखों मजदूरों, खेतों में काम करने वाले लाखों किसानों, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले असंख्य गरीबों के पास ले जाना चाहते हैं. इंकलाब का संदेश ऐसी आजादी लाएगा जिसमें आदमी के हाथों आदमी की लूट असंभव हो जाएगी.
भगत सिंह के विचारों के कारण उस समय की क्रान्तिकारी लहर को धर्मनिरपेक्ष रूप प्राप्त हुआ |


भगत सिंह प्राय: कहते थे- आजादी तो हमें मिल ही जाएगी किन्तु हमें इस पर भी विचार करना चाहिए कि आजाद भारत में हम किस प्रकार के समाज का निर्माण करेंगे. कहीं गोरे साहबों के स्थान पर काले साहब तो आकर हमारे सिरों पर नहीं बैठ जाएंगे. रूसी क्रान्ति के बाद सारे संसार में समाजवाद की चर्चा प्रारंभ हो गई थी. किसानों-मजदूरों के हितों की चिंता, सर्वहारा वर्ग में उभरती क्रान्ति चेतना को देश के नौजवानों में फैलाने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की. भगत सिंह का कहना था कि हम इस देश में समाजवादी गणतंत्र की स्थापना चाहते हैं |