भारत के इतिहास का उल्लेख करने की कोई
आवश्कता नहीं है | इतिहास सिख लेकर किये गए गलतियों में सुधार करने के लिए पड़ी जाती है | हमारे देश के इतिहास में कुछ मीठे, कुछ खट्टे, कुछ तीखे यादें हैं आज
जरूरत है उससे जो कुछ मीठे हो उसे निकाल कर वाकी को वहीँ दफन कर देने का लेकिन
दुर्भाग्यवस ऐसा होता नहीं दिख रहा है आज जो कुछ हो रहा है वह दुर्भाग्यपुर्ण ही नहीं हास्यास्पद भी है | धर्म-जात
की राजनीती करने वाले कुछ नेताओं ने इतिहास के गरे मुर्दे को निकालकर जिसतरह से
दुर्गन्ध फैला रहे हैं उससे भारतीय समाज टूट कर बिखर रहा है |
एक बार के लिए चलो मान भी लिया जाये कि 1528 में मीर बांकी/बाबर अयोध्या आया और उसने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई...तो क्या ? बुद्ध मठों को तोड़कर या
परिवर्तित कर मंदिर बनाए गए...तो क्या
?
आज 2013 के इस वैज्ञानिक युग
में इन बातों का कोई औचित्य नहीं है | दुनियां कहाँ से कहाँ जा रही है और हम
आज भी मंदिर और मस्ज्जिद में उलझे हैं |
गौर करने वाली बात यह है की जिस देश में गरीबों को रहने के लिए घर नहीं है, जिस
देश में पढ़ने के लिए इक बहुत बड़ी आवादी को स्कूल नसीब नहीं है, जिस देश में
वेरोजगार युवाओं का इक लम्बी फ़ौज खड़ी हो, वह देश आज भी मंदिर और मसजिद बनाने और
तोड़ने में उलझा रहे तो यह हमारी बदनसीबी के सिवा कुछ नहीं हो सकती है | हे शियासत
करने वालों मुझे और न उलझाओ मंदिर,मसजिद और गिरजाघरों में, हम युवाओं को ना मंदिर
चाहिए ना मज्जिद, मुझे तो बस पुस्तकालय, स्कूल,कॉलेज और
रोजगार चाहिए | हे देश के युवा साथियों शिक्षित
बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो...तभी देश चहुं तरफा विकास कर पाएगा |
क्या
होगा
मस्जीद
में
नमाज
अदा
कर,
क्या होगा जो गुरुद्वारे में जा के मथ्था टेंकुं,
क्या होगा जो गंगा में मैं सिक्के फेंकूं,
क्या होगा जो चर्च में जाकर करू प्रेयर,
क्या होगा रामायण और गीता रटकर,
क्या होगा जो गुरुद्वारे में जा के मथ्था टेंकुं,
क्या होगा जो गंगा में मैं सिक्के फेंकूं,
क्या होगा जो चर्च में जाकर करू प्रेयर,
क्या होगा रामायण और गीता रटकर,
क्या होगा जो करूँ में गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ,
क्या होगा जो कुरआन के रट्टे मारूँ सात आठ,
बाईबिल को पढ़ कर क्या होगा,
राम और रहीम को जानकर क्या होगा,
क्या होगा ये सब कर के,
क्या होगा इंसानियत को तज के,
मैं इंसान हूँ, मुझे सियासत नहीं आती,
आदमी को आदमी से बांटे वो धर्म नहीं भाती.