Wednesday, February 13, 2013

“कब तक उलझे रहोगे भारतवासियों” ‘मंदिर,मसजिद और गिरजाघरों में’



भारत के इतिहास का उल्लेख करने की कोई आवश्कता नहीं है | इतिहास सिख लेकर किये गए गलतियों में सुधार करने के लिए पड़ी जाती है | हमारे देश के इतिहास में कुछ मीठे, कुछ खट्टे, कुछ तीखे यादें हैं आज जरूरत है उससे जो कुछ मीठे हो उसे निकाल कर वाकी को वहीँ दफन कर देने का लेकिन दुर्भाग्यवस ऐसा होता नहीं दिख रहा है आज जो कुछ हो रहा है वह  दुर्भाग्यपुर्ण ही नहीं हास्यास्पद भी है | धर्म-जात की राजनीती करने वाले कुछ नेताओं ने इतिहास के गरे मुर्दे को निकालकर जिसतरह से दुर्गन्ध फैला रहे हैं उससे भारतीय समाज टूट कर बिखर रहा है | 
एक बार के लिए चलो मान भी लिया जाये कि 1528 में मीर बांकी/बाबर  अयोध्या आया और उसने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई...तो क्या बुद्ध मठों को तोड़कर या परिवर्तित कर मंदिर बनाए गए...तो क्या ?

आज 2013  के इस वैज्ञानिक युग में इन बातों का कोई औचित्य नहीं है | दुनियां कहाँ से कहाँ जा रही है और हम आज भी मंदिर और मस्ज्जिद  में उलझे हैं | गौर करने वाली बात यह है की जिस देश में गरीबों को रहने के लिए घर नहीं है, जिस देश में पढ़ने के लिए इक बहुत बड़ी आवादी को स्कूल नसीब नहीं है, जिस देश में वेरोजगार युवाओं का इक लम्बी फ़ौज खड़ी हो, वह देश आज भी मंदिर और मसजिद बनाने और तोड़ने में उलझा रहे तो यह हमारी बदनसीबी के सिवा कुछ नहीं हो सकती है | हे शियासत करने वालों मुझे और न उलझाओ मंदिर,मसजिद और गिरजाघरों में, हम युवाओं को ना मंदिर चाहिए ना मज्जिद, मुझे तो बस पुस्तकालय, स्कूल,कॉलेज और रोजगार चाहिए | हे देश के युवा साथियों  शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो...तभी देश चहुं तरफा विकास कर पाएगा |



क्या होगा मस्जीद में नमाज अदा कर,

क्या होगा जो गुरुद्वारे में जा के मथ्था टेंकुं,
क्या होगा जो गंगा में मैं सिक्के फेंकूं,

क्या होगा जो चर्च में जाकर करू प्रेयर,
क्या होगा रामायण और गीता रटकर,

क्या होगा जो करूँ में गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ,
क्या होगा जो कुरआन के रट्टे मारूँ सात आठ,

बाईबिल को पढ़ कर क्या होगा,
राम और रहीम को जानकर क्या होगा,

क्या होगा ये सब कर के,
क्या होगा इंसानियत को तज के,

मैं इंसान हूँ, मुझे सियासत नहीं आती,
आदमी को आदमी से बांटे वो धर्म नहीं भाती.



“आखिर हम क्यों बाटे जाते हैं धर्म के नाम पर, जाती के नाम पर”



जब हमारा देश गुलाम था हमारे अन्दर अपनी आजादी की ललक थी | हमारे अन्दर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी लेकिन हम जैसे ही आजाद हुए हमें धर्म के नाम पर दो देश में बाट दिया गया और तभी से हमारा देशभक्ति का लव बुझने लगा और धर्म के नाम पर हमारी लड़ाई बढ़ने लगी | देश की जगह धर्म हमारी पहचान बन गयी, हम कभी-कभी धर्म को सबसे ऊपर समझने की भूल कर बैठे जिसके परिणामस्वरूप आजादी के बाध हमें कई दंगे झेलने पड़े | आजादी के वाद जिन नेताओं ने सरकार चलाने का जिम्मा लिया वो सभी के सभी स्वतंत्रता सेनानी थे उनके अन्दर देशभक्ति कुछ हद तक थी लेकिन ज्यो ज्यो वह पीढ़ी ख़तम हुयी हमारी धार्मिक चरमपंथी, इन नेताओं के लिए राजनीतिक मुद्दा बनने लगा इसके वाद तो धर्म को भी बाट कर जाती को मुद्दा बनाया जाने लगा | हम या तो धर्म के नाम पर वोट देने लगे या जाती के नाम पर या फिर वोट ही नहीं देते हैं आज भी हालत नहीं बदला है और यही कारण है की अगर कोई कोशिश भी करे तो विकाश मुद्दा नहीं बनता है क्योकि हमारे अन्दर इक भावना भर दिया गया की चुनाव नेता नहीं जीतता जाती और धर्म जीतती है | ऐसा माहोल बनाया गया है इस देश के लोग वास्तविकता से अपरिचित रहे क्योकि विकास पसंद जनता सवाल पूछती है और सरकार से हिसाब मांगती है | साथियों पिछले साल से इस देश के युवाओं में जागरूकता आया है | हमें फिर से अपने अन्दर वही आजादी वाला जूनून लाना होगा और नयी आजादी की लड़ाई काले अंग्रेजों से ही लड़ना होगा | हमने गोरों की गुलामी से आजादी पा लिया लेकिन कुछ काले नेताओं की पैसे की भूख ने हमें विवश किया फिर से नयी आजादी के लिए | साथियों  आगे बड़े और अपने अन्दर वही देशप्रेम के साथ नयी आजादी की शुरुआत करें | हमारी इक ही पहचान है भारत यही हमारी जाती यही हमारा धर्म है | हम अपने आप में इक भारत हैं जिस दिन इस भावना के साथ हमलोग जुड़ जायेंगे उस दिन भारत विश्व गुरु बन जायेगा |
दबने का वक़्त ख़तम हुआ ,
अब उठने का वक़्त है ,
गुस्से को पिने का वक़्त ख़तम हुआ ,
अब लड़ने का वक़्त है ,
एक जगह पर ठहरे हुए 64 साल बीत गए ,
अब चलने का वक़्त है ,
वक़्त किसी के लिए नहीं ठहरता ,
अगर अब भी उनसे ही उम्मीद किये बैठे रहे ,
तो समझो मरने का वक़्त है , जय भारत |
आंदोलन देशप्रेम, संपर्क करें – अमित सिंह +91-8822363984