Sunday, December 9, 2012

असम में चार साल (पहल भाग "सांस्कृतिक यात्रा" )







बीत गयी सो बात गयी लेकिन यादें, यादें विवश करती है बीते हुए समय से कुछ सिखने और जो कुछ सिख पाया उसे लोगों तक पहुचाने  की, अपनी जिन्दगी के चार महत्वपूर्ण  साल असम में बिता कर मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूँ । बीते चार सालों में, मैं इस प्रदेश को जितने करीब से देखा और इसे समझा उसका संक्षिप्त वर्णन करने की मेरी छोटी सी कोशिश ।
भारत के पूर्वोत्तर भाग में हिमालय और ब्रहमपुत्र के सौंदर्य से महिमामंडित विस्तृत भूभाग में फैला विभिन्नताओं का प्रदेश,असम है ! एतिहासिक कल में इसे कामरूप के नाम से जाना जाता था । असम का शाब्दिक अर्थ होता है जिसके समान दूसरा न हो - प्रकृती, संस्कृति  और सभ्यता में सही मायने में भारत में ऐशा कोई दूसरा प्रदेश नहीं है । नारी समानता, जाती समानता और दहेज़ प्रथा जैसे कुरीतियों के क्षेत्र में असम आज शेष भारत के लिए अनुकर्नीये है ।
विभिन्न प्रजातियों से बने यहाँ के समाज में वह सौमनस्य देखा जाता है जिसे भारत के परिवेश में आदर्श कहा जायेगा । असम मानव प्रजातियों  का एतिहासिक मिलन स्थल रहा है- मंगोलियाई ,थाई, काकेशी, वर्मी और आस्ट्रेलियाई आदी प्रजातियाँ यहाँ शदियों से मिलन भाव से रह रही है । इस मेल जोल ने असम के सामाजिक जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित किया फलतः यहाँ एक ऐसी  जीवन शैली का विकाश हुआ जिसपर सम्पूर्ण भारत नाज कर सकता है। इस शैली ने यहाँ के सांस्कृतिक जीवन को एक अलग पहचान दी ।

यहाँ की सांस्कृतिक जीवन को आज भी प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है । जापी (बास के बने गोल टोपे जिसके किनारी इक रंगे  से मडी होती है तथा जिसपे सलमें सितारे लगे होते हैं ) अतिथियों के सम्मान के लिए उनके सर पर पहनाया जाता है । असम अपनी शिल्पकारिता के लिए पुरे देश में जाना जाता है । यहाँ की धातु शिल्प सदियों से अपनी गुणवत्ता के लिए जाना जाता है । आज भी इन बर्तनों में खाना खिलाना यहाँ के लोग अपना शान समझते हैं । पान जिसे असमिया भाषा में तामोल कहते हैं इसे खाना और खिलाना यहाँ शिष्टाचार  का एक अंग है ।


असम के सांस्कृतिक प्रतीकों में सिर्फ शिल्प के नमूने ही नहीं प्रकृति के साथ झूमना और गाना भी शामिल है । असमियाँ कलेंडर का पहला मास है बहाग(वैशाख )  इसी मास यहाँ वसंत का शुभागमन होता है । असम का सबसे बड़ा उत्सव रंगाली  बिहू  इसी मास में मनाया जाता है । मौशम के गरमाते ही इस अंचल के वृक्ष रंग विरंगे फूलों से खिल उठते हैं । प्रकृति के संग यहाँ के लोग भी झुमने गाने लगते हैं । रंगाली  बिहू जो खुले मैदान में आयोजित होती है इसमें युवकों- युवतियों  का समूह परंपरागत  वाद्यंत्र के साथ पुरे जोश में कमोदीप्पक नृत्य बिहू में भाग लेते जो यहाँ की संस्कृती  में चार चाँद लगाती  है ।
 इसी प्रकार माघ महीने में जब किसान फसल काटकर कर घर लौटता है तो भोगाली बिहू मनाया जाता है खाने के विभिन्न पारंपरिक व्यंजनों से भरपूर यह बिहू और भी मनमोहक हो जाता है । खाने में पीठा , नारियल का लाडू प्रमुख रूप से बनाया जाता है |




असम की सांस्कृतिक यात्रा तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक हम यहाँ के लोगों का प्रेमोपहार गमोसा (गमछा ) की चर्चा नहीं कर लेते । प्राचीन समय से ही असम में हथकरघे पर कपड़ा बुना जाता रहा है । महात्मा गाँधी ने असम यात्रा के दौरान यहाँ की कन्याओं को कपड़ा बुनते हुए देखा था और बडे प्रभावित होकर उन्होंने कहा असमियाँ कन्या करघे पर स्वप्न बुनती है । गमछा यहाँ अपने से बड़ों को अपनी क्ष्रधा के प्रतीक स्वरुप भेट किया जाता है ।

कला के क्षेत्र में असम प्राचीन समय से ही जाना जाता है । विश्व की पहली महिला चित्रकार चित्रलेखा तेजपुर की रहने वाली थी । यहाँ की पारम्परीक जनजातियों में कला का गुण आज भी है ।घर घर में कलात्मक वस्त्र निर्माण और चित्रांकन यहाँ की दैनिक क्रिया है ।
इसका जीता जगता उदहारण हमें दिसम्बर 2011 को गुवाहाटी के सुर्सजई स्टेडियम में देखने को मिला जहाँ बच्चों ने मिलकर 1100 मीटर लम्बी चित्र बनाकर एक कृतिमान बनाया ।


लोक संस्कृती  के समृधि के हिसाब से असम बहुत धनी प्रदेश है । किसी संदर्भ में अगर यहाँ परंपराओं का शासन है तो किसी मामले में स्थानीय शिल्प तो कहीं लोककलाओं को अग्रता मिली है । आमतौर पर सभी सांस्कृतिक इकाइयों में बसे  प्रतीक पाए जाते हैं जिनसे उन इकाइयों को विशिस्ट सांस्कृतिक पहचान मिलती है पर जिस गंभीरता के साथ असमियाँ समाज अपने सांस्कृतिक प्रतीकों से जुड़ा है वह अन्य समाज के लिए अनुकरणीय  है  यह प्रतिक ही हैं जिनसे आज का असम अपने आप को अभिव्यक्त कर पाता है ।

अनेक प्रकार के नाकारात्मक आन्दोलन के बावजूद असम आज यदि जागृत है तो इसमें संदेह नहीं की यह जागृति बहुत हद तक इन सांस्कृतिक प्रतीकों के कारण ही है ।








Saturday, September 1, 2012

देश की वर्तमान राजनीती और युवा



 भगवान कृष्ण जो करते थे वो सब राजनीति ही थी। भगवान राम जो करते थे वो भी राजनीति ही थी। महात्मा गांधी,सरदार  वल्लव  भाई  पटेल, सुभाष  चन्द्र  बोस ,  देश को जगाने के लिए राजनीति में  आए थे। राजनीति बुरी चीज नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में आजादी की ललक को जिंदा नहीं रखा जा सका। सोचिये क्यों ??? आखिर क्यों युवा राजनीती में आना नहीं चाहता  है ? क्यों हम राजनीती शब्द  से नफरत करने लगे है ??
इसके कई कारण है -----
. राजनीती में परिवारवाद का परचलन |
चुनाव में दौलतमंद का कब्ज़ा |
क्षेत्रवाद, धर्मवाद, जातिवाद आदि का राजनीती में अधिकता |
. अपराधी का राजनीतिकरण या फिर ये कहूँ की राजनीती का अपराधीकरन  |
युवाओं में देशप्रेम की भावना का कमी या फिर ऐसी हालत बनायीं गयी इस देश के युवा को पेट भरने के लिए जिन्दगी भर सोचना परता है |
उद्योगपतियों द्वारा खाश खाश परिवारों को राजनीती में बित्तिये सहायता |
 ७.
देश के युवाओं को अगर स्वराज के निर्माण में हिस्सेदार बनाया गया  होता तो ये दूरी नहीं होती।
आज से 40 साल पहले देश का जो नेतृत्व उभर कर आया वो या तो स्वतंत्रता संग्रामी थे या फिर कला से जुड़े लोग थे लेकिन धीरे धीरे परिवारों से, जातियों से , बंदूक की नोक से नेता पैदा होने लगे और युवा तथा समाज के पदेलिखे देशभक्त  लोग इससे दूरियां बनाने लगे  जो कालांतर में नफरत में पैदा हो गया और नफरत बढता ही जा रहा है | 

यह बुराइयां आई हैं और इन्हें दूर करने के लिए युवाओं को नेतृत्व में आना ही होगा। मैं स्वयं बहुत सी सामान्य परिवार से आता हूं। मेरे परिवार में कोई राजनीति का "र" भी नहीं जानता है  लेकिन मैं हिम्मत के साथ समाज के लिए कुछ करने के लिए निकल पड़ा हूं। राजनीति बहुत ही निर्णायक पोजीशन पर होती है। मैं युवाओं को निमंत्रण देता हूं कि राजनीति में आईये  हम  स्वागत करते है देश के ६५ करोड़ युवा विचारों का जो नौकर,सेल्समैन और दलाल बनकर उद्योगपतियों के लिए कम करते है | आप अपनी उर्जा कब तक दुसरे के लिए खर्च करते रहेंगे, कब तक अमेरिका के लिए सॉफ्टवेर बनाते रहेंगे, कब तक गुलामी की व्यवस्था में जीते रहेंगे हालत ये है की युवाओं को इंजीनियरिंग करने के वाद कॉल सेंटर, पिज्जाहट में नौकरी  करना परता है बहुत दुःख होता है यह सुनकर  व्यवस्था के खिलाप मन में विद्रोह आता है यही विद्रोह ने युवा लोकतान्त्रिक मोर्चा का जन्म दिया | पुरे देश में युवाओं का एक मात्र राजनीतिक मंच पर मै पुनः आपका स्वागत करता हूँ आप हमसे जुड़ें  और एक नई राजनीतिक इबादत लिखने को तैयार हो जाएँ  देश को आपकी जरूरत है मान भारती आपको पुकार रही है |

वतन का फिक्र कर ए नादां मुशीवत आने वाली है,
तेरे वर्वादियों के मश्वरें है आसमानों में ,
न समझोगे ! तो मिट जाओगे ए हिन्दोस्तां वालों
तेरी दास्ताँ भी न होगी दास्तानों में ||

युवा साथियों कुछ बनने के सपने देखने के लिए राजनीति में नहीं आना चाहिए बल्कि कुछ करने के मकसद से राजनीति में आना चाहिए आप कुछ करने के उद्देश्य से आएंगे तो कुछ बन भी जाएंगे। राजनीति मक्खन पर लकीर करने वाला खेल नहीं हैं यह पत्थर पर लकीर करने वाला खेल है और पत्थर पर लकीर देश के युवा खीचेंगे।  मेरा पूरा विश्वाश है कब तक मुह छिपाते रहोगे वीर भरत के सपूतों कब तक गली देते रहोगे इन नेताओं को जिसने अपनी  माँ तक को बेच दिया  |


कर्णधार तू बना तो हाथ में लगाम ले
क्रांति को सफल बना नसीब का न नाम ले
भेद सर उठा रहा मनुष्य को मिटा रहा
गिर रहा समाज आज बाजुओं में थाम ले
त्याग का न दाम ले
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले
यह स्वतन्त्रता नहीं कि एक तो अमीर हो
दूसरा मनुष्य तो रहे मगर फकीर हो
न्याय हो तो आरपार एक ही लकीर हो
वर्ग की तनातनी न मानती है चांदनी
चांदनी लिये चला तो घूम हर मुकाम ले
त्याग का न दाम ले
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले
देश के युवा साथियों  आगे बड़ो और लगाम अपने हाथ में लो ताकि गरीब की रोटी उसके थाली तक पहूच सके |
जय हिंद , जय भारत  |