बिहार
में गिरती कानून व्यवस्था जिस तरह से बिहार की कानून व्यवस्था गिर रही है उसे देखते
हुए लगता है की बिहार में फिर से लालू-राबड़ी सरकार का जंगल राज वापस आ गया है |
बिहार में सूचना के अधिकार के तहत सूचना
मांगने पर आवेदकों पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर उनका मानसिक और शारीरिक रूप से
प्रताड़ित किया जाता है | मार्च 2012 से लेकर अबतक 404 फर्जी मुकदमें सामने आए हैं इसमें
दर्जनों आवेदकों को जेल तक भेजा गया | पिछले कुछ सालों में बिहार में छः RTI
कार्यकर्ताओं की हत्या की गई, शशिधर मिश्र (बेगुसराय), रामविलास सिंह (लखीसराय),
रामकुमार ठाकुर,राहुल कुमार (मुज्जफरपुर), राजेश कुमार यादव (भागलपुर) और डाक्टर
मुरलीधर जायसवाल (मुंगेर), इतने कार्यकर्ताओं की हत्या के वावजूद नीतीश कुमार की
सरकार की निष्क्रियता यह है कि सरकार किसी भी हत्या की जांच को लेकर गंभीर नहीं है
|
बिहार में अपराधों की संख्या की वृद्धी हुई है| लालू-राबड़ी के समय 2005 में संज्ञेय अपराध के एक लाख चार हजार सात
सौ अठहत्तर मामले थे तो 2010 में एक लाख छब्बीस हजार तीन सौ छियालीस। 2005 में सांप्रदायिक दंगे व फसाद के मामले
जहां 7,704 थे वहीं 2010 में 8,189 तक पहुंच गए। सुशासनी सरकार के समय में दहेज
हत्या के मामले में राज्य दूसरे पायदान तक पहुंच गया।
पटना उच्च न्यायालय की 2011 की
एक टिप्पणी पर नजर डालना जरूरी है। न्यायालय ने टिप्पणी की कि ‘पटना में जंगलराज है, यहां नियम नहीं चलते, ऑफीसर और बाबुओं की मिलीभगत से हर काम
संभव है।
शिक्षा
की बिगड़ती हालात बिहार में दस हजार शिक्षक कक्षा पांच की परीक्षा भी पास
नहीं कर पाए फिर भी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं | आप समझ सकते हैं की बिहार में किस
स्तर की शिक्षा दी जा रही है | यह खुलाशा बिहार सरकार का शिक्षक दक्षता परीक्षा
में हुआ है |सरकार का कहना है कि जो शिक्षक पास नहीं हुए उनपर कोई कार्यवायी नहीं
होगी उन्हें दुबारा पास होने का मौका दिया जायेगा|
बिहार में 6.5 फीसदी स्कूलों में कोई शिक्षक नहीं है, 20 फीसदी में पेयजल की व्यवस्था नहीं है, 56 फीसदी में शौचालय नहीं हैं और 88 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से
शौचालय नहीं हैं l 63 फीसदी छात्र-छात्राएं
ही प्राथमिक विद्यालय से माध्यमिक विद्यालय में पहुंचते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 84 फीसदी है l यह है बिहार में
प्राथमिक शिक्षा की जमीनी हालात |
बिहार
में स्वास्थ्य की हालात बिहार में 1641 प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में से केवल 533 केंद्र 24 घंटे काम करते हैं l 69,246 सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आशा
योजना के तहत नियुक्त 10 हज़ार से ऊपर
कार्यकर्ता प्रशिक्षित नहीं हैं l अधिकाँश के पास दवाओं
का किट बैग नहीं है l आंगनवाड़ी
कार्यकर्ताओं की संख्या पहले ही ज़रूरत से काफी कम थी, अब और घटती जा रही है l बिहार की सार्वजनिक
स्वास्थ्य सेवाओं के पास ढांचागत संसाधनों की बहुत कमी है। संसाधनों का अनुमान
लगाने का एक आम तरीका है कि एक सरकारी अस्पताल कितनी आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं
प्रदान करती है। इसका राष्ट्रीय औसत प्रति अस्पताल 1.45 लाख व्यक्ति है, उत्तर प्रदेश का औसत 1.98 लाख व्यक्ति, जबकि बिहार का औसत 8.7 लाख व्यक्ति है।प्रति व्यक्ति सार्वजनिक
चिकित्सा व्यय की दृष्टि से भी बिहार देश के राज्यों की सूची में काफी नीचे है।
बिहार सरकार को अगर
गरीबों की स्वास्थ्य की चिंता होती तो बिहार सरकार हर गावं में शराब की दुकान नहीं
खोलती | 2 दिन पहले ही नीतीश कुमार ने घोषणा की है
कि शराब-मुक्त गाँव को
बिहार सरकार द्वारा 1 लाख रुपये का इनाम दिया जायेगा.
अच्छी बात है अब जरा बिहार के सुशासन में शराब के कारोबार पर नजर डालते हैं
2005-06 ... 319 करोड.
2006-07 ... 384 करोड.
2007-08 ... 536 करोड.
2008-09 ... 749 करोड.
2009-10 ... 1011 करोड.
2010-11 ... 1542 करोड.
2011-12 ... 2015 करोड.
2012-13 ... 2700 करोड.
2013-14 ... 3200 करोड. (लक्ष्य)
अच्छी बात है अब जरा बिहार के सुशासन में शराब के कारोबार पर नजर डालते हैं
2005-06 ... 319 करोड.
2006-07 ... 384 करोड.
2007-08 ... 536 करोड.
2008-09 ... 749 करोड.
2009-10 ... 1011 करोड.
2010-11 ... 1542 करोड.
2011-12 ... 2015 करोड.
2012-13 ... 2700 करोड.
2013-14 ... 3200 करोड. (लक्ष्य)
वर्ष 2006-2007 में राज्य में शराब
दुकानों की स्वीकृत संख्या 3436 थी इससे बढ़ कर वर्ष 2007-08 में 6,184 किया गया. हालांकि संख्या पर फिर अंकुश लगाया गया और वर्ष 2012-13 में दुकानों की संख्या
5,300 तक लायी गयी.इतना कारोबार सिर्फ राज्य सरकार द्वारा किया
जा रहा है ऐसे में आप
कैसे कह सकते हैं की अवैध शराब का कारोबार
नियंत्रित हो सकता है? कैसे जहरीली शराब से होने वाली मौतों के
लिये सुशासन सरकार जिम्मेदार नहीं है ?
सिटीजन एलायंस अगेंस्ट मालन्यूट्रीशियन संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है l
बिहार में आधारभूत संरचना की बात की जाय तो बिहार की
हालात अभी भी चिंतनीय है " राष्ट्रीय स्तर पर
प्रति लाख आबादी पर 257 किलोमीटर सड़क है, जबकि बिहार में प्रति लाख आबादी पर मात्र 90 किलोमीटर सड़क है " फिर भी पुरे
दुनिया में ये शोर है कि बिहार में सडकों का जाल बिछा दिया गया है l प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में जहां
दूसरे राज्यों में 60 फीसदी काम हुआ है, वहीं बिहार की उपलब्धि मात्र 35 फीसदी है l
सरकार के दोहरे चरित्र
का एक मामला बिहार की राजधानी और पटना जिले के नौबतपुर प्रखंड में प्रकाश में आया
| यहां तथाकथित सुशासन की सरकार ने वर्ष 2007 में
किसानों की 96 एकड़ उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण चीनी मिल
लगाने के झूठे वादे के साथ शुरू तो किया लेकिन बाद में उक्त जमीन को विजय माल्या
के स्वामित्व वाली यूवी ग्रुप ऑफ कम्पनीज को शराब फैक्ट्री लगाने के लिए दे दिया |
बिहार सरकार में भ्रष्टाचार बिहार सरकार ने
लगभग 24 अरब का हेरफेर किया था | भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) ने बिहार
के सरकारी बिभागों से सम्बंधित अपनी आडिट रिपोर्ट में कई गंभीर अनियमितताओं की बात
कही थी | बेवजह खर्च, गलत भुगतान, कर लगाने और वसूलने में अनियमितता समेत राजस्व
हानि के अनेक मामलों में कुल मिलाकर लगभग 24 अरब रुपए का नुकशान बताया गया था |
पटना उच्च न्यायालय ने बिहार के सरकारी खजाने से 11412 करोड़ की निकासी सम्बन्धी
कथित वित्तीय गड़बड़ी की सीबीआई
जांच के आदेश दिए थे लेकिन इस पुरे मुद्दे को आज तक दबा कर रखा गया है
| बिहार के महालेखागार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकारी खजाने से निकाली गई
इस राशि के खर्च के जरूरी विवरण न होने से बड़ी वित्तीय अनियमितता का संदेह होता है
| इस रिपोर्ट के आधार पर दायर एक जनहित याचिका पर दो दिन सुनवाई के वाद उच्च
न्यायालय की खंडपीठ ने इस मामले को केन्द्रीय जाँच ब्यूरो को सौपने का आदेश दिए थे
लेकिन दुःख की बात है कि आज तक ना ही कोई जाँच हुआ है ना ही मिडिया और न विपक्ष इस
मुद्दे को सही से उठाया है |
नीतीश कुमार पर संवेदनहीनता का आरोप नीतीश एक संवेदनहीन नेता है जो बिहार की जनता से केवल वोट लेना
जानते हैं | बिहार में जितनी भी बड़ी दुर्घटना हुई उसमें उनका जो बयान आया वह
शर्मनाक है | हाल ही में हुए पटना बम विष्फोट पर जब उनसे पूछा गया की क्या
गाँधी मैदान में सुरक्षा की कमी थी ? उनका जवाब था की सुरक्षा की पूरी
व्यवस्था थी अब क्या मुख्यमंत्री लाठी लेकर सुरक्षा करेगा | इतना शर्मनाक बयान एक
संवेदनहीन व्यक्ती ही दे सकता है | मशरक मिड डे मील कांड में हुई मासूमों की मौत में भी वे पीड़ितों से मिलने
तक नहीं गए | नक्सल द्वारा माईन विष्फोट में हुए सात किसानों की मौत पर भी वे
पीड़ितों से नहीं मिले | धमराहा घाट में हुई 37 लोगों की मौत पर भी नीतीश कुमार
पीड़ित परिवार से नहीं मिलने गए | प्रदेश का मुख्यमंत्री जब इस तरह से संवेदनहीन हो
तो सुशासन का सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है |
नीतीश कुमार की मीडियावाजी बिहार
में एक जुमला बहुत चर्चित है “नीतीश की मीडिया
या मीडिया का नीतीश”| जिस तरह से बिहार में मीडिया पर
अघोषित नियंत्रण है वह बहुत ही चिंतनीय है | विज्ञापन के द्वारा मिडिया पर अपना
वर्चस्व बना ली है सरकार देखने वाली बात ये है कि लालू-राबड़ी
देवी के समय 2005-06 में जहां 4.49 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च हुए थे, वहीं नवंबर 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश साल
दर साल विज्ञापनों का बजट बढ़ाती रही। 2009-10 में यह
बजट 34.59 करोड़ पर पहुंच गया था ।
नितीश की मिडियाबाजी का जवाब आने वाले चुनाव में बिहार की जनता देगी ....ये जनता है जिसे ज्यादा दिनों तक वेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है |