Sunday, December 15, 2013

नीतीश के सुशासन का सच



  
                      

बिहार में गिरती कानून व्यवस्था  जिस तरह से बिहार की कानून व्यवस्था गिर रही है उसे देखते हुए लगता है की बिहार में फिर से लालू-राबड़ी सरकार का जंगल राज वापस आ गया है |
बिहार में सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने पर आवेदकों पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर उनका मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है | मार्च 2012 से लेकर अबतक 404 फर्जी मुकदमें सामने आए हैं इसमें दर्जनों आवेदकों को जेल तक भेजा गया | पिछले कुछ सालों में बिहार में छः RTI कार्यकर्ताओं की हत्या की गई, शशिधर मिश्र (बेगुसराय), रामविलास सिंह (लखीसराय), रामकुमार ठाकुर,राहुल कुमार (मुज्जफरपुर), राजेश कुमार यादव (भागलपुर) और डाक्टर मुरलीधर जायसवाल (मुंगेर), इतने कार्यकर्ताओं की हत्या के वावजूद नीतीश कुमार की सरकार की निष्क्रियता यह है कि सरकार किसी भी हत्या की जांच को लेकर गंभीर नहीं है |
बिहार में अपराधों की संख्या की वृद्धी हुई है|  लालू-राबड़ी के समय 2005 में संज्ञेय अपराध के एक लाख चार हजार सात सौ अठहत्तर मामले थे तो 2010 में एक लाख छब्बीस हजार तीन सौ छियालीस। 2005 में सांप्रदायिक दंगे व फसाद के मामले जहां 7,704 थे वहीं 2010 में 8,189 तक पहुंच गए। सुशासनी सरकार के समय में दहेज हत्या के मामले में राज्य दूसरे पायदान तक पहुंच गया।
पटना उच्च न्यायालय की 2011 की एक टिप्पणी पर नजर डालना जरूरी है। न्यायालय ने टिप्पणी की कि पटना में जंगलराज है, यहां नियम नहीं चलते, ऑफीसर और बाबुओं की मिलीभगत से हर काम संभव है।
शिक्षा की बिगड़ती हालात  बिहार में दस हजार शिक्षक कक्षा पांच की परीक्षा भी पास नहीं कर पाए फिर भी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं | आप समझ सकते हैं की बिहार में किस स्तर की शिक्षा दी जा रही है | यह खुलाशा बिहार सरकार का शिक्षक दक्षता परीक्षा में हुआ है |सरकार का कहना है कि जो शिक्षक पास नहीं हुए उनपर कोई कार्यवायी नहीं होगी उन्हें दुबारा पास होने का मौका दिया जायेगा|  
बिहार में 6.5 फीसदी स्कूलों में कोई शिक्षक नहीं है, 20 फीसदी में पेयजल की व्यवस्था नहीं है, 56 फीसदी में शौचालय नहीं हैं और 88 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं l 63 फीसदी छात्र-छात्राएं ही प्राथमिक विद्यालय से माध्यमिक विद्यालय में पहुंचते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 84 फीसदी है l यह है बिहार में प्राथमिक शिक्षा की जमीनी हालात |
बिहार में स्वास्थ्य की हालात बिहार में 1641 प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में से केवल 533 केंद्र 24 घंटे काम करते हैं l 69,246 सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आशा योजना के तहत नियुक्त 10 हज़ार से ऊपर कार्यकर्ता प्रशिक्षित नहीं हैं l अधिकाँश के पास दवाओं का किट बैग नहीं है l आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या पहले ही ज़रूरत से काफी कम थी, अब और घटती जा रही है l बिहार की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के पास ढांचागत संसाधनों की बहुत कमी है। संसाधनों का अनुमान लगाने का एक आम तरीका है कि एक सरकारी अस्पताल कितनी आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती है। इसका राष्ट्रीय औसत प्रति अस्पताल 1.45 लाख व्यक्ति है, उत्तर प्रदेश का औसत 1.98 लाख व्यक्ति, जबकि बिहार का औसत 8.7 लाख व्यक्ति है।प्रति व्यक्ति सार्वजनिक चिकित्सा व्यय की दृष्टि से भी बिहार देश के राज्यों की सूची में काफी नीचे है।
बिहार सरकार को अगर गरीबों की स्वास्थ्य की चिंता होती तो बिहार सरकार हर गावं में शराब की दुकान नहीं खोलती | 2 दिन पहले ही नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि शराब-मुक्त गाँव को बिहार सरकार द्वारा 1 लाख रुपये का इनाम दिया जायेगा.
अच्छी बात है अब जरा बिहार के सुशासन में शराब के कारोबार पर नजर डालते हैं
2005-06 ... 319
करोड. 
2006-07 ... 384
करोड. 
2007-08 ... 536
करोड. 
2008-09 ... 749
करोड. 
2009-10 ... 1011
करोड. 
2010-11 ... 1542
करोड. 
2011-12 ... 2015
करोड. 
2012-13 ... 2700
करोड. 
2013-14 ... 3200
करोड. (लक्ष्य)
वर्ष 2006-2007 में राज्य में शराब दुकानों की स्वीकृत संख्या 3436 थी इससे बढ़ कर वर्ष 2007-08 में 6,184 किया गया. हालांकि संख्या पर फिर अंकुश लगाया गया और वर्ष 2012-13 में दुकानों की संख्या 5,300 तक लायी गयी.इतना कारोबार सिर्फ राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है ऐसे में आप कैसे कह सकते हैं की अवैध  शराब का कारोबार नियंत्रित हो सकता है? कैसे जहरीली शराब से होने वाली मौतों के लिये सुशासन सरकार जिम्मेदार नहीं है ?

सिटीजन एलायंस अगेंस्ट मालन्यूट्रीशियन संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है l

 बिहार में आधारभूत संरचना की बात की जाय तो बिहार की हालात अभी भी चिंतनीय है " राष्ट्रीय स्तर पर प्रति लाख आबादी पर 257 किलोमीटर सड़क है, जबकि बिहार में प्रति लाख आबादी पर मात्र 90 किलोमीटर सड़क है " फिर भी पुरे दुनिया में ये शोर है कि बिहार में सडकों का जाल बिछा दिया गया है l प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में जहां दूसरे राज्यों में 60 फीसदी काम हुआ है, वहीं बिहार की उपलब्धि मात्र 35 फीसदी है l
सरकार के दोहरे चरित्र का एक मामला बिहार की राजधानी और पटना जिले के नौबतपुर प्रखंड में प्रकाश में आया | यहां तथाकथित सुशासन की सरकार ने वर्ष 2007 में किसानों की 96 एकड़ उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण चीनी मिल लगाने के झूठे वादे के साथ शुरू तो किया लेकिन बाद में उक्त जमीन को विजय माल्या के स्वामित्व वाली यूवी ग्रुप ऑफ कम्पनीज को शराब फैक्ट्री लगाने के लिए दे दिया |
बिहार सरकार में भ्रष्टाचार  बिहार सरकार ने लगभग 24 अरब का हेरफेर किया था | भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) ने बिहार के सरकारी बिभागों से सम्बंधित अपनी आडिट रिपोर्ट में कई गंभीर अनियमितताओं की बात कही थी | बेवजह खर्च, गलत भुगतान, कर लगाने और वसूलने में अनियमितता समेत राजस्व हानि के अनेक मामलों में कुल मिलाकर लगभग 24 अरब रुपए का नुकशान बताया गया था | पटना उच्च न्यायालय ने बिहार के सरकारी खजाने से 11412 करोड़ की निकासी सम्बन्धी कथित वित्तीय गड़बड़ी की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे लेकिन इस पुरे मुद्दे को आज तक दबा कर रखा गया है | बिहार के महालेखागार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकारी खजाने से निकाली गई इस राशि के खर्च के जरूरी विवरण न होने से बड़ी वित्तीय अनियमितता का संदेह होता है | इस रिपोर्ट के आधार पर दायर एक जनहित याचिका पर दो दिन सुनवाई के वाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस मामले को केन्द्रीय जाँच ब्यूरो को सौपने का आदेश दिए थे लेकिन दुःख की बात है कि आज तक ना ही कोई जाँच हुआ है ना ही मिडिया और न विपक्ष इस मुद्दे को सही से उठाया है |
नीतीश कुमार पर संवेदनहीनता का आरोप नीतीश एक संवेदनहीन नेता है जो बिहार की जनता से केवल वोट लेना जानते हैं | बिहार में जितनी भी बड़ी दुर्घटना हुई उसमें उनका जो बयान आया वह शर्मनाक है | हाल ही में हुए पटना बम विष्फोट पर जब उनसे पूछा गया की  क्या  गाँधी मैदान में सुरक्षा की कमी थी ? उनका जवाब था की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था थी अब क्या मुख्यमंत्री लाठी लेकर सुरक्षा करेगा | इतना शर्मनाक बयान एक संवेदनहीन व्यक्ती ही दे सकता है | मशरक मिड डे मील कांड में  हुई मासूमों की मौत में भी वे पीड़ितों से मिलने तक नहीं गए | नक्सल द्वारा माईन विष्फोट में हुए सात किसानों की मौत पर भी वे पीड़ितों से नहीं मिले | धमराहा घाट में हुई 37 लोगों की मौत पर भी नीतीश कुमार पीड़ित परिवार से नहीं मिलने गए | प्रदेश का मुख्यमंत्री जब इस तरह से संवेदनहीन हो तो सुशासन का सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है |
नीतीश कुमार की मीडियावाजी  बिहार में एक जुमला बहुत चर्चित है नीतीश की मीडिया या मीडिया का नीतीश| जिस तरह से बिहार में मीडिया पर अघोषित नियंत्रण है वह बहुत ही चिंतनीय है |  विज्ञापन के द्वारा मिडिया पर अपना वर्चस्व बना ली है सरकार  देखने वाली बात ये है कि लालू-राबड़ी देवी के समय 2005-06 में जहां 4.49 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च हुए थे, वहीं नवंबर 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश साल दर साल विज्ञापनों का बजट बढ़ाती रही। 2009-10 में यह बजट 34.59 करोड़ पर पहुंच गया था ।
नितीश की मिडियाबाजी का जवाब आने वाले चुनाव में बिहार की जनता देगी ....ये जनता है जिसे ज्यादा दिनों तक वेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है |




Tuesday, May 21, 2013

हे वीर युवाओं ............


सिंहसावक का जबड़ा फाड़कर उसकी दातों की गणना करने वाले,
वीर बालक भरत की वीरता बताने आया हूँ,
विश्व क्षितिज पर भारतीयता का डंका बजाने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||

वेदों का ज्ञान, गीता का मर्म,
रामायण का प्यार और महाभारत का शौर्य बताने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||

राष्ट्र हीत में जियो, राष्ट्र हीत में धर्म करो,
राष्ट्र सर्वोपरी है यही गीता और महाभारत का सार है,
राष्ट्र की रक्षा का फिर से तैयारी करने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||

करो तुम कद्र हरेक मजहब का यह सिखाने आया हूँ,
जाती का ना तुम भेद करो यह बताने आया हूँ,
नारी पुजनिये है यह समझाने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||

मजदूर किसान है देश की शान यह बताने आया हूँ,
जयजयकार करो तुम जवानों का यह समझाने आया हूँ,
सम्मान करो तुम विज्ञान का यह सिखाने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||

भ्रष्ट्र सरकार के भ्रष्ट्र मंत्रियों का पोल खोलने आया हूँ,
बिके हुए अख़बारों का मोल बताने आया हूँ,
मुझे राग दरवारी नहीं आती इसलिए ......
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||

अन्याय सहकर बैठ जाना महा दुष्कर्म है,
समस्या से मुहँ छिपाना अधर्म है,
अगर आप समस्या के समाधान का हिस्सा नहीं तो आप भी इक समस्या हो
यह समझाने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||

गाँधी,सुभाष,तिलक,आजाद,भगत और पटेल के कर्म दोहराने आया हूँ,
भारत को खुशहाल बनाने के लिए फिर से क्रांती की बीज बोने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||
हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब
यह विश्वाश दिलाने आया हूँ |
हे वीर युवाओं भारत में फिर से अलख जगाने आया हूँ ||







Saturday, March 23, 2013

23 मार्च 1931 "बलिदान दिवस"


आज 23 मार्च शहीद ऐ आजम भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के बलिदान दिवस के अवसर पर कृतज्ञ राष्ट्र की भाव भीनी श्रधांजलि तथा युवा सलाम |
इस महान क्रांतिकारियों के लिए दो शब्द—
आपने दिया देश को जीवन, यह देश आपको क्या देगा ??
मगर गर्म रखने को लहू यह नाम आपका लेगा ||

साथियों यूँ तो  इस देश के क्रान्तिकारियों की लम्बी सूची हैं. उनकी संख्या भी कम नहीं है जो फांसी पर चढ़े, किन्तु भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु का बलिदान के उपरांत भारत में क्रांति की लहर इतनी तेज हो गयी थी  अंग्रेजों के नीव हिल गए थे
सशस्त्र क्रान्ति द्वारा देश को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने का प्रयास करना चाहिए यह विचार 1857 की सैनिक क्रान्ति के बाद से ही उभरने लगा था और देश के विभिन्न भागों में उसकी सक्रियता भी प्रारंभ हो गई थी. 
स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयत्नों की  प्रेरणा में धर्म-भावना का प्रभाव भी बहुत व्यापक था. बंगाल के क्रान्तिकारी हाथ में गीता लेकर फांसी पर झूल जाते थे. देश में आया नवजागरण हिन्दू नवजागरण, मुस्लिम नवजागरण और सिख नवजागरण के रूप में उभरा था. लेकिन भगत सिंह इनसे भिन्न किन्तु भगत सिंह संसार के विभिन्न भागों  में होने वाली क्रान्तियों से पूरी तरह परिचित होना चाहते थे और अपने सभी प्रयासों को उसी तरह ढालना चाहते थे. फ्रांस की राजक्रान्ति और रूस की बोल्शेविक क्रान्ति ने उन्हें बहुत प्रभावित और रोमांचित किया था. मार्क्‍स और लेनिन की  पुस्तकों को वह बड़े मनोयोग से पढ़ते थे.
साथियों भगत सिंह इक व्यक्ति नहीं विचार थे उनका इक प्रिये शायरी जो वो हमेशा दोहराते रहते थेहमें यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है

     हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
     दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
     चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
     सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।


 एकवार इंकलाब को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा था  .इंकलाब जिंदाबाद से हमारा अर्थ है कभी पराजय स्वीकार न करने वाली वह भावना, जिसने जतिन दास जैसे शहीद पैदा किए. हमारी इच्छा है कि हम यह नारा बुलन्द करते समय अपने आदर्शो की भावना को जिंदा रखें. इंकलाब सिर्फ बम और पिस्तौल के साथ ही नहीं जुड़ा होगा. बम और पिस्तौल तो कभी-कभी इंकलाब के भिन्न-भिन्न रूपों की पुष्टि के लिए साधन मात्र हैं. हम यह स्वीकार करते हैं कि केवल बगावत को इंकलाब कहना ठीक नहीं है हम देश में बेहतर परिवर्तन के लिए इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं. , हम अपना नारा कारखानों में काम करने वाले लाखों मजदूरों, खेतों में काम करने वाले लाखों किसानों, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले असंख्य गरीबों के पास ले जाना चाहते हैं. इंकलाब का संदेश ऐसी आजादी लाएगा जिसमें आदमी के हाथों आदमी की लूट असंभव हो जाएगी.
भगत सिंह के विचारों के कारण उस समय की क्रान्तिकारी लहर को धर्मनिरपेक्ष रूप प्राप्त हुआ |


भगत सिंह प्राय: कहते थे- आजादी तो हमें मिल ही जाएगी किन्तु हमें इस पर भी विचार करना चाहिए कि आजाद भारत में हम किस प्रकार के समाज का निर्माण करेंगे. कहीं गोरे साहबों के स्थान पर काले साहब तो आकर हमारे सिरों पर नहीं बैठ जाएंगे. रूसी क्रान्ति के बाद सारे संसार में समाजवाद की चर्चा प्रारंभ हो गई थी. किसानों-मजदूरों के हितों की चिंता, सर्वहारा वर्ग में उभरती क्रान्ति चेतना को देश के नौजवानों में फैलाने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की. भगत सिंह का कहना था कि हम इस देश में समाजवादी गणतंत्र की स्थापना चाहते हैं |

Wednesday, February 13, 2013

“कब तक उलझे रहोगे भारतवासियों” ‘मंदिर,मसजिद और गिरजाघरों में’



भारत के इतिहास का उल्लेख करने की कोई आवश्कता नहीं है | इतिहास सिख लेकर किये गए गलतियों में सुधार करने के लिए पड़ी जाती है | हमारे देश के इतिहास में कुछ मीठे, कुछ खट्टे, कुछ तीखे यादें हैं आज जरूरत है उससे जो कुछ मीठे हो उसे निकाल कर वाकी को वहीँ दफन कर देने का लेकिन दुर्भाग्यवस ऐसा होता नहीं दिख रहा है आज जो कुछ हो रहा है वह  दुर्भाग्यपुर्ण ही नहीं हास्यास्पद भी है | धर्म-जात की राजनीती करने वाले कुछ नेताओं ने इतिहास के गरे मुर्दे को निकालकर जिसतरह से दुर्गन्ध फैला रहे हैं उससे भारतीय समाज टूट कर बिखर रहा है | 
एक बार के लिए चलो मान भी लिया जाये कि 1528 में मीर बांकी/बाबर  अयोध्या आया और उसने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई...तो क्या बुद्ध मठों को तोड़कर या परिवर्तित कर मंदिर बनाए गए...तो क्या ?

आज 2013  के इस वैज्ञानिक युग में इन बातों का कोई औचित्य नहीं है | दुनियां कहाँ से कहाँ जा रही है और हम आज भी मंदिर और मस्ज्जिद  में उलझे हैं | गौर करने वाली बात यह है की जिस देश में गरीबों को रहने के लिए घर नहीं है, जिस देश में पढ़ने के लिए इक बहुत बड़ी आवादी को स्कूल नसीब नहीं है, जिस देश में वेरोजगार युवाओं का इक लम्बी फ़ौज खड़ी हो, वह देश आज भी मंदिर और मसजिद बनाने और तोड़ने में उलझा रहे तो यह हमारी बदनसीबी के सिवा कुछ नहीं हो सकती है | हे शियासत करने वालों मुझे और न उलझाओ मंदिर,मसजिद और गिरजाघरों में, हम युवाओं को ना मंदिर चाहिए ना मज्जिद, मुझे तो बस पुस्तकालय, स्कूल,कॉलेज और रोजगार चाहिए | हे देश के युवा साथियों  शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो...तभी देश चहुं तरफा विकास कर पाएगा |



क्या होगा मस्जीद में नमाज अदा कर,

क्या होगा जो गुरुद्वारे में जा के मथ्था टेंकुं,
क्या होगा जो गंगा में मैं सिक्के फेंकूं,

क्या होगा जो चर्च में जाकर करू प्रेयर,
क्या होगा रामायण और गीता रटकर,

क्या होगा जो करूँ में गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ,
क्या होगा जो कुरआन के रट्टे मारूँ सात आठ,

बाईबिल को पढ़ कर क्या होगा,
राम और रहीम को जानकर क्या होगा,

क्या होगा ये सब कर के,
क्या होगा इंसानियत को तज के,

मैं इंसान हूँ, मुझे सियासत नहीं आती,
आदमी को आदमी से बांटे वो धर्म नहीं भाती.